Ease India

  • Home
  • Blogs
  • गवी – केरल का बाघ अभयारण्य

गवी – केरल का बाघ अभयारण्य

Lorem Ipsum is simply dummy text of the printing and typesetting industry. Lorem Ipsum has been the industry’s standard

केरल में घूमते फिरते जो ख्याल मन में आया वह था कि ईश्वर ने ये स्थान निश्चय ही अपने घूमने फिरने के लिए ही बनाया होगा । यह था प्रसिद्ध लेखक पेटे का कथन । ऐसा ही स्थान घूमने की हमारी अभिलाषा थी ।

भारत के सुदूर दक्षिणी छोर पर बसा केरल प्रदेश ऐसा स्थान है जहाँ पर ईश्वर की अनुकम्पा चारों और बसी है ।अपने अनछुए प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध केरल अपनी नम जलवायु के कारण स्वर्गिक सौंदर्य को समेटे हुए है भारत के कुछ अन्य राज्य जो अपनी हरियाली के लिए प्रसिद्ध हैं यह उनसे जरा हटकर है। यहाँ के हरी घास के मैदान, चावल के खेत घने छायादार वृक्ष, हवा के साथ लहराते नारियल के पेड़ चप्पे चप्पे पर आपका स्वागत करते हैं आप इसे हल्का हरा कहो घना हरा पुकारो या श्यामल हरियाली की चादर में लिपटा कहो जिस नाम से चाहे पुकारो पर यह तो निश्चित है कि चित्रकार के पास और हरा रंग रहा ही नहीं । लगता है केरल को बनाने के बाद ईश्वर के पास ही हरे का कोई शेड नहीं बचा ।

हाँ॥ हम जरा ज्यादा ही भावुक हो रहे हैं पर केरल है ही ऐसा कि ‘ईश्वर की नगरी’ अपने इस नाम को पूरी तरह सार्थक करता है।

हमारी योजना थी कि रानी वन विभाग की देखरेख में पेरियार बाघ अभयारण्य से अपनी यात्रा आरम्भ करेंगे। वहां हम दो रात बिताएंगे ।

कोच्ची से हमने यात्रा का प्रारंभ किया ।बेहद थकाने वाली कमर तोड़ यात्रा पूरी करके जब हम घने जंगल के मध्य अपने वाहन से उतरे तो वहां की घनी हरयाली देखकर थकावट कब काफूर हो गयी पता ही नहीं चला । घना हरा जंगल ॰ बारिश में धुले नहाये पत्ते । केरल में तो हर आती जाती साँस के बाद ऐसा ही अनुभव होता है।

केरल फॉरेस्ट डवलपमेंट कारपोरेशन द्वारा खोले गए ‘ग्रीन मेन्शन’ नाम के होटल के रिसेप्शन पर पहुंचकर जहां हमारे ठहरने की व्यवस्था थी हमने तुरंत ट्रैकिंग पर जाने की इच्छा जाहिर की। बदकिस्मती से बारिश बरसती गयी , तेज होती गयी और हमको ड्राइव करके ही जाना पड़ा।

अगली सुबह जाने वाली सबसे पहली जंगल सफारी में हमने बुकिंग कर ली | जिसमें नाश्ता, दो घंटे की ट्रैकिंग, लंच और नौका विहार भी शामिल था । ईश्वर ने हमारी प्रार्थना सुन ली और उससे अगले दिन मौसम खुल गया।

कोच्ची से हमने यात्रा का प्रारंभ किया ।बेहद थकाने वाली कमर तोड़ यात्रा पूरी करके जब हम घने जंगल के मध्य अपने वाहन से उतरे तो वहां की घनी हरयाली देखकर थकावट कब काफूर हो गयी पता ही नहीं चला । घना हरा जंगल ॰ बारिश में धुले नहाये पत्ते । केरल में तो हर आती जाती साँस के बाद ऐसा ही अनुभव होता है।

केरल फॉरेस्ट डवलपमेंट कारपोरेशन द्वारा खोले गए ‘ग्रीन मेन्शन’ नाम के होटल के रिसेप्शन पर पहुंचकर जहां हमारे ठहरने की व्यवस्था थी हमने तुरंत ट्रैकिंग पर जाने की इच्छा जाहिर की। बदकिस्मती से बारिश बरसती गयी , तेज होती गयी और हमको ड्राइव करके ही जाना पड़ा।

अगली सुबह जाने वाली सबसे पहली जंगल सफारी में हमने बुकिंग कर ली | जिसमें नाश्ता, दो घंटे की ट्रैकिंग, लंच और नौका विहार भी शामिल था । ईश्वर ने हमारी प्रार्थना सुन ली और उससे अगले दिन मौसम खुल गय I

दी ट्रैक

हमारे ग्रीन मेन्शन के पिछवाड़े से ही हमारी ट्रैक शुरू हो गयी लगभग पेंतालिस मिनट चलने के बाद हम घने जंगल के मुहाने पर पहुंचे रास्ता खतरनाक नजर आ ही रहा था क़ि हमारे गाइड सेल्वराज ने हमें खबरदार किया क़ि कहीं ज्यादा देर न रुकना वरना जौंक चिपट जाएंगी।

हाँ आपने ठीक सुना – हाँ जौंक ही कहा था।

मानसून के बाद दिसंबर माह तक यह मार्ग जोंक से भरा रहता हे । हालांकि जौंक से बचने के लिए हमने कैनवस से बने विषेश प्रकार के मोज़े, जींस और स्नीकर्स पहन रखे थे पर जौंक फिर भी हम तक पहुंच ही गयी । कैसे – यह तो और भी आश्चर्यजनक है ?

हम दलदली पगडंडी पर चलते रहे और जौंक स्नीकर्स पर चढ़ती गयी , साथ ही रास्ते में पड़ी टहनियों को हटाकर चलने की कोशिश में वो कूद कर हमारे ऊपर चढ़ती रहीं। हमारे शरीर के निचले भाग में चढ़ी हुई जौंक को सेल्वराज तत्परता से उतारता रहा|

दूसरी और सेल्वराज खुद तो हवाई चप्पल ही पहने था , पैंट उसने घुटनों तक चढ़ा रखी थी, वो हर पन्दरह मिनट बाद रुकता – कुल ४० सेकंड में अपने ऊपर चढ़ी जौंक उतार फेंकता और फिर चल पड़ता , यह सब देखकर अच्छा तो नहीं लग रहा था पर इससे जंगल में रहने वालों के जीवन की वास्तविकता का पता हमें चल रहा था | सेल्वराज की निपुणता और जंगलों का ज्ञान हमें उस क्षेत्र के जीवन से परिचित करा रहा था |

वहां काम करने वाले अन्य कई लोग सेल्वराज की तरह जंगलों से जुड़े थे , कुछ तो आदिवासी थे जो वन विभाग के द्वारा इस क्षेत्र को संरक्षित घोषित करने से पहले ही वहां जन्मे थे । उनकी कई पीढ़ियां वहीँ रहती चली आ रहीं थीं। जंगलों की अपनी प्राकृतिक सुंदरता को बदस्तूर बनाये और इसके वास्तविक पर्यावरण को बिगड़ने से बचाने के लिए इन जंगल निवासियों को इस संरक्षित क्षेत्र में ड्राइवर , खानसामा, सफाई कर्मचारियों के रूप में रोजगार दे दिया गया था। वन विभाग ने यहां के निवासियों की सहायता से छोटी इलायची और अन्य फसलें उगाना भी शुरू कर दिया है ।

इन पगडंडियों पर चलते – चलते हम पुल्लूमेडु की चोटी तक पहुँच गए , यहाँ से हमें ऐतिहासिक सबरीमाला मंदिर और उसके आसपास के स्थानों के दर्शन हुए। यहाँ पर वन और भी सघन हो गया। जहाँ तक नजर जाती नीचे घने घास के मैदान , ऊपर निहायत नीला आकाश। सब कुछ एक दम शांत , एक पत्ता हिलने की भी आवाज नहीं। मन में एक कल्पना जागी कि घास पर चटाई बिछी है, हाथ में किताब है, हम घने नीले आकाश के तले पड़े , पढ़ रहे हैं।या विभिन्न आकृतियां बनाते बादलों को निहार रहें हैं। पर न किताब थी न चटाई। मन और आँखों में बसे इन सपनो को कैमरे में उतारने कि कोशिश में हमने खूब सारी फोटो खींची।

गवी ही क्यों ?

पेरियार बाघ अभयारण्य घूमने की सलाह हमें हमारे एक मित्र ने दी थी। जब एक दिन हम अपने मित्र के सामने शिकायत कर रहे थे कि केरल में समुद्रीतट, चाय काफी के बागान , पहाड़ या फिर यहां के ऐतिहासिक चर्च- मंदिर , या आयुर्वेद और फिर नृत्य के अलावा अब देखने को कुछ और है ही नहीं। अच्छा ही हुआ कि उस मित्र की सलाह मानकर हमने पेरियार देखने की योजना बना ली।

कुछ साधारण सूचना

पेरियार बाघ अभयारण्य ९२५ किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। यह बाघ संरक्षण के लिए बने अन्य २७ संरक्षित क्षेत्रों में से एक है।इससे संबंधित सभी जानकारी वेबसाइट पर उप्लब्ध है।

कैसे पहुंचें ?

कोच्चि से गवी १८५ किलोमीटर दूर है | रास्ता अत्यंत सुन्दर है | निचले क्षेत्रों में रबर के वृक्ष और पहाड़ी क्षेत्रों में चाय के बागान | यहीं रुककर एक घंटा लंच के लिए लगाया । घुमावदार और संकरे रास्ते को पार करने में पांच घण्टे लग गए |

रास्ते की जानकारी लगातार गूगल मैप से ही ले रहे थे , सौभाग्य से जानकारी बिल्कुल सही मिलती जा रही थी। हाईवे की सभी सड़कें अच्छी हैं पर अन्य रास्ते संकरे घुमावदार हैं जिन पर लगातार सावधान रहने की आवश्यकता हे। केरल में ज्यादातर छोटे शहरों के आसपास ‘बाईपास ‘ नहीं बने हैं।।शहर के मध्य से होकर ट्रैफिक और ‘वन -वे ‘ से होकर ही गुजरना पड़ता हे । सहायता के लिए रुक – रुक कर लोगों से रास्ते की जानकारी ली जा सकती हे ।कोच्चि से मूलामत्तम तक ट्रैफिक और भीड् – भड़क्का काफी है । बाकी रास्ते पर ट्रैफिक ज्यादा नहीं हे ।

एलप्पारा के चाय बागानों की सुंदरता जो मन को छूकर कहीं अतल गहराई में उतर जाती है को देखना न भूलें। उस पूरे रास्ते की सुंदरता के मध्य एलप्पारा के चाय बागान आज भी मन को गुदगुदाते हैं ।

गवी एक दिन में

गवी में यात्री एक दिन की यात्रा के लिए भी आते हैं। थेक्कडी से जीप में एक दिन की यात्रा की जा सकती है , जिसमें जंगल सफारी , नौका विहार और ट्रैकिंग शामिल है नाश्ते और लंच समय के मध्य ये यात्री संरक्षित वन क्षेत्र की गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं ।

पिछले कुछ दिनों में यूरोपीय यात्रियों की संख्या यहां काफी बढ़ी है ‘एलिस्टेयर इंटरनेशनल ‘ प्रसिद्ध टूरिज्म कम्पनी ने ‘ भारत के प्रसिद्ध स्थान ‘ की सूची में इसे पर्यावरण संरक्षित स्थान की तरह शामिल किया है। ‘केरल टूरिस्ट वेबसाइट ‘ के अनुसार गवी यात्रा पर आने वाले अधिकतर लोग एडवेंचर या पर्यावरण के चाहने वाले होते हैं।

हमारी सलाह है कि यात्रियों को यहाँ एक रात तो अवश्य रुकना चाहिए । यात्रियों के लिए वन सुबह ६ बजे से शाम ६ बजे तक खुला रहता है , पर वन का असली आनंद तो अँधेरे के बाद ही शुरू होता है ।

पर्यावरण संरक्षित परियोजना और यहां ठहरने का प्रबंध —-

कमरे: कमरों में सभी आवश्यक सुविधाएँ जैसे टॉयलेट पेपर , तौलिये ,गरम पानी सब उपलब्ध है। यहां दीवारों पर खून के धब्बे भी देखने को मिलते हैं , शायद यहाँ आने वाले यात्री अपनी जोंक उतारकर दीवारों पर मसल देते हैं ।

टैण्ट: झील के किनारे उपलब्ध टैण्ट हमें कमरों से अधिक आरामदायक लगे ( कम से कम खून के दाग तो नहीं थे ) ये टैण्ट आकार में बड़े हैं , बाथरूम भी बड़े हैं , ज्यादा साफ़ , बिना घिच – पिच के। अपने लिए चाय – कॉफी बनाने क़ी सुविधा भी है —बिना डेरी क्रीमर के , चाय कॉफी के सैशे मिल जायेंगे पर सीमित मात्रा में ।
टैण्ट एक दूसरे से दूरी पर हैं जिससे जंगल में रहने का आभास मिलता है। कल्पना करिये आप अपने टैण्ट के बरामदे में झील क़ी तरफ मुंह करके बैठे हैं, हाथ में पसंदीदा पेय है | झील के शांत जल में जंगल क़ी छाया उतर आई है , धीरे – धीरे सूर्य देव अस्ताचल को चले गए हैं , चारो ओर अँधेरा —जंगली जानवरों की आवाज , और घना अँधेरा ,प्रकाश के नाम पर केवल जुगनुओं की जलती बुझती रौशनी और ऐसे में आ—प । याद आने को क्या ? केवल गाने – कविताएँ , एक दूसरे का साथ और लम्बी – लम्बी बातें । विश्राम की इससे अच्छी और क्या जगह हो सकती है ?
कमजोर दिल वाले घबराएँ नहीं , आपके टैण्ट के पास कोई जंगली जानवर फटक नहीं सकता , क्योंकि हाईवॉल्ट के बिजली के तार इन टैन्ट से कुछ हटकर बिछाए गए हैं ,जिन्हें यहाँ के चौकीदार अँधेरा होने के बाद चालू कर देते हैं ।
पूरी छावनी बनी है। खाने के लिए अपने टैण्ट से निकलकर दूसरे में जाना पड़ता है। अँधेरे में वहाँ जाना किसी जादू से कम नहीं है। एक दम सुनसान , आवाज है तो बस कीड़े – मकोड़ों की , हवा में हिलते पत्तों या आपके पांऊँ के नीचे के पत्तों की ।

भोजन: जो यात्री केरल का स्थानीय भोजन नहीं खा सकते उनके लिए थोड़ी समस्या हो सकती है , यात्री निवास के किराए में केरल का केवल शाकाहारी भोजन ही शामिल है । मांसाहारी भोजन केवल रात्रि को ही परोसा जाता है , और सुबह नाश्ते में अंडा मिलता है | हमने देखा कि एक यूरोपीय यात्री लंच के समय केवल पापड़ खा कर अपनी भूख मिटा रहा था। जबकि भोजन में चावल ,रोटी ,अवियल साम्भर , बंद गोभी की सब्जी , दही और मीठा सभी परोसा गया था।
इस भोजन व्यवस्था का मुख्य कारण है यहाँ के आदिवासियों का खानसामा के रूप में काम करना। वन विभाग का मानना है कि स्थानीय लोगों को रोजगार मिलना चाहिए।
चाय के समय चाय – कॉफी और बिस्कुट की व्यवस्था है चाय के साथ और किसी तरह का नाश्ता यहां न बिकता है न खरीदा जा सकता है। हमारी सलाह है कि अपने साथ दो समय का कप – नूडल्स या और किसी तरह का नाश्ता लेकर चलें तो अच्छा है।
अगर आप ‘ ग्रीन मेन्शन ‘ से जंगल की तरफ जाएँ तो २० मिनट का रास्ता तय करने के बाद एक छोटा पल आएगा फिर एक खुली जगह के पास पोस्ट ऑफिस आता है , उसी के पास एक चाय की दुकान ( चाय कद्दा ) है , वह साबुन , और खाने के लिए चिप्स , मूंगफली और मद्रासी मिक्स्चर आदि भी बेचता है , वहाँ की चाय भी स्वादिष्ट है |

बुकिंग कैसे कराएँ: गवी इको – टूरिज्म की वेब साइट http://gavi.kfdcecotourism.com पर लोग ओन करें या +९१ ४८६९२२३ २७० या + ९१ ९९४७ ९२३९९ पर कॉल भी कर सकते हैं ये नंबर कुलथुपालम् , कुमाली, इडुक्की केरल हॉलिडे होम बिल्डिंग के बुकिंग ऑफिस के हैं |

प्रतिबंध: जंगल का यह पूरा इलाका केरल फॉरेस्ट डेवलपमेंट कारपोरेशन (के .ऍफ़ . डी .सी ) के कण्ट्रोल में है , इस लिए वहाँ जाने के लिए इस विभाग की अनुमति जरूरी है | सैंक्चुअरी के प्रवेश द्वार पर एंट्री- फी. के साथ यह अनुमति भी प्राप्त की जा सकती है |
वन विभाग ने मई २०१२ से गवी घूमने वाले यात्रियों की संख्या को कंट्रोल में रखने के लिए कुछ प्रतिबंध लगाये हैं | सैंक्चुअरी के पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए ये कदम उठाने आवश्यक हैं | २०१० से २०१२ तक आने वाले यात्रियों ने पर्यावरण को जो हानि पहुंचाई उसको मद्देनजर रखकर ये कदम उठाये गए | विभाग को यह आशा है कि इस प्रतिबंध से वह वन को हानि पहुंचाने वाली प्लास्टिक की थैलियों ,रैपर्स , बोतलों जैसी वस्तुएं जो आसानी से मिट्टी का रूप नहीं लेती से यहां के वातावरण को काफी हद तक बचाया जा सकेगा |

इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए आप रिज़र्वेशन काफी पहले करा लें तो अच्छा है | अगर आप थेक्कडी से केवल एक दिन की यात्रा कर रहें हैं तो आपका टूर ऑपरेटर अनुमति आदि सब का प्रबंध कर देगा | जितने यात्री ‘ ग्रीन मेंशन ‘ में रूकते हैं उनके लिए सब प्रबंध ग्रीन मेंशन वाले कर देते हैं |

वहाँ के दृश्यों से परिचित कराने के लिए अब हम आपको एक स्लाइड – शो पर ले चलते हैं | ये वो फोटो हैं जो हमने गवी में खींची थीं |

आप हमें लिखें कि क्या आपको हमारी वेबसाइट पसंद आई ? आपके सुझावों का हमें इन्तजार रहेगा | आपकी सेवा के लिए हम सदैव तैयार हैं I

×